बदलाब जीबन का नियम है। हम चाहे भी तो इसे बदल नहीं सकते। हम इंसान के हात मैं कुछ चीज़े नहीं होते। परिबर्तन को अपनाने से जीबन सरल और सुन्दर होता है। मनुष्य कुछ पाने को कठिन परिश्रम करता है। इससे और कोई उपाय भी नहीं है के हमे जो चाहिये जीबन मैं बो चीज़ हमे मिले।परिश्रम से मिले फल कम भी हो पर आत्मसंतोष मिलता है और उसका कदर भी होता है। बिना परिश्रम का फल जैसे कुछ समय तक ही हम को सुख दे सकता है। मनुष्य का ब्यबहार सफलता पाने से पहले और सफलता पानेके बात मैं बहुत अंतर होता है। सफलता से पहले मनुष्य मनुष्य को मनुष्य जैसा ब्यबहार करता है। बो भगबान को पूजता है और भगबान के फल के प्रति उसके मन मैं डर रहता है। उसको पता होता है की अगर कुछ गलत की तो भगबान हमसे नाराज़ होंगे। पर मनुष्य जब कुछ जीबन मैं हासिल कर लेता है तब उसका ब्यबहार मनुष्य और समाज के प्रति बदल जाता है। बहुत कम लोग दुनिआ मैं सफल होने के बात इंसान बने रहते हैं। कुछ लोग सफलता के बात इंसान से ऊपर और भगबान से कम खुद को आंकते हैं और यह दुनिआ का ऐसा सच है जिसे हम चाहकर भी झुटला नहीं सकते। समाज के प्रति जो सोच होती है सफलता के पहले वह अब कहीं खो चूका होता है। अब इंसान खुद को उन्नत करने मैं अपना समय और पैसा का इस्तेमाल करता है। जो कभी दिन दुखी को देखते ही उनको पैसे दे देताथा अब उनको देख के मुँह मोड़ लेता है। अब मंदिर की और जाता नहीं , घर मैं आलीशान मंदिर जो बना चूका होता है। लोग डरने लगते है उससे, जो कभी लोगो के साथ बैठकर मस्ती करता था। समाज मैं उसको पुराने पहचान मैं उसको छोटा महसूस करबाता है। खुद को दूसरोंसे अलग साबित करके अपना बड़ापन देखता है। यह बदलाब आता है कुछ पाने से पहले और कुछ पाने के बात। पर इंसान तो नादान होता है। कभी न कभी उसको अपनी गलती का पता चल ही जाताहै। फिर बो जो शांति मान ,प्रतिष्ठा ,धन मैं खोज रहा होता है बो अब लोगो के सेबा मैं , भजन कीर्तन मैं , परोपकार मैं , समाज सेबा मैं आत्मसंतोष लाभ करता है। P.Patra
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